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लिवर फ्लूक: इस पैरासिटिक इंफेक्शन के बारे में क्या जानना ज़रूरी है?

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लिवर फ्लूक क्या होते हैं?

लिवर फ्लूक पत्ते जैसे दिखने वाले परजीवी कीड़े (फ्लैटवर्म) होते हैं, जो इंसानों के लिवर, गॉलब्लैडर और बाइल डक्ट्स में इंफेक्शन फैलाते हैं। ये ट्रेमाटोडा क्लास के परजीवी होते हैं और इन्हें ट्रेमाटोड इंफेक्शन का एक प्रकार माना जाता है। वयस्क फ्लूक 10-30 मिमी तक लंबे हो सकते हैं और लिवर के अंदर सालों तक ज़िंदा रह सकते हैं, जहां ये बाइल और खून पर पलते हैं। अगर इनका इलाज न किया जाए, तो लिवर फ्लूक इंफेक्शन गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है।

लिवर फ्लूक के प्रकार क्या होते हैं?

कई तरह के लिवर फ्लूक इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं:

  • क्लोनॉर्किस साइनेंसिस (चीनी या ओरिएंटल लिवर फ्लूक) – यह एशिया में पाया जाता है, खासकर कोरिया, चीन और वियतनाम में।
  • ओपिस्थॉर्किस विवेरिनी – यह दक्षिण-पूर्व एशिया में ज़्यादा मिलता है, खासकर थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया में।
  • ओपिस्थॉर्किस फेलिनियस – पूर्वी यूरोप और पुराने सोवियत संघ के इलाकों में पाया जाता है।
  • फैसिओला हेपैटिका (कॉमन लिवर फ्लूक या शीप लिवर फ्लूक) – यह दुनिया भर में समशीतोष्ण (टेम्परेट) जलवायु वाले इलाकों में पाया जाता है।
  • फैसिओला जाइगैन्टिका – यह ट्रॉपिकल यानी गर्म और आर्द्र जलवायु वाले अफ्रीका और एशिया के इलाकों में पाया जाता है।

लिवर फ्लूक इंफेक्शन के लक्षण क्या हैं?

लिवर फ्लूक इंफेक्शन के लक्षण इस पर निर्भर करते हैं कि संक्रमण किस स्टेज में है और कितना गंभीर है।

शुरुआती (एक्यूट) स्टेज में:

जब अपरिपक्व फ्लूक आंतों से लिवर तक पहुंचते हैं, तब ये लक्षण दिख सकते हैं:

  • पेट में दर्द
  • बुखार
  • मतली और उल्टी
  • डायरिया
  • शरीर पर खुजली या चकत्ते (हाइव्स)
  • खांसी
  • मांसपेशियों में दर्द

क्रॉनिक इंफेक्शन में:

जब वयस्क फ्लूक बाइल डक्ट में बस जाते हैं, तो ये लक्षण सामने आ सकते हैं:

  • जॉन्डिस (पीलिया) – त्वचा और आंखों का पीला पड़ना
  • अपच (इंडाइजेशन)
  • चिकनाई वाली चीज़ों से परेशानी (फैटी फूड इनटॉलरेन्स)
  • वजन घटना
  • लिवर का बढ़ जाना
  • बाइल डक्ट में रुकावट (बाइल डक्ट ऑब्स्ट्रक्शन)
  • गॉलब्लैडर में पथरी (गॉलब्लैडर स्टोन)
  • पैंक्रियास में सूजन (पैंक्रियाटाइटिस)

कई लोगों में सालों तक कोई लक्षण नहीं दिखते, जबकि परजीवी धीरे-धीरे बाइलरी सिस्टम को नुकसान पहुंचाते रहते हैं। जब लक्षण उभरते हैं, तो वे अक्सर अन्य पाचन समस्याओं जैसे लगते हैं, जिससे सही डायग्नोसिस करना मुश्किल हो जाता है।

लिवर फ्लूक इंफेक्शन के कारण क्या हैं?

लिवर फ्लूक इंफेक्शन आमतौर पर दूषित खाना या पानी पीने से होता है, जिसमें फ्लूक के लार्वा मौजूद होते हैं। ये सूक्ष्म लार्वा संक्रमित घोंघों (स्नेल) से निकलकर मीठे पानी (फ्रेशवॉटर) में फैलते हैं। वहां से ये जलीय पौधों (एक्वेटिक प्लांट्स) या मीठे पानी की मछलियों और केकड़ों (क्रस्टेशियन) के शरीर में जाकर चिपक जाते हैं। जब इंसान इन्हें कच्चा या अधपका खा लेते हैं, तो लार्वा शरीर में पहुंचकर इंफेक्शन फैला देते हैं।

लिवर फ्लूक कैसे होता है?

आप लिवर फ्लूक इंफेक्शन इन कारणों से पकड़ सकते हैं:

  • कच्ची, अधपकी, सुखाई हुई, नमक में रखी या अचार में डाली गई मीठे पानी की मछली खाने से, जिसमें क्लोनॉर्किस साइनेंसिस या ओपिस्थॉर्किस प्रजाति के लार्वा मौजूद हों।
  • संक्रमित जलीय पौधों (जैसे वॉटरक्रेस) खाने से, जिनमें फैसिओला हेपैटिका या फैसिओला जाइगैन्टिका के लार्वा छिपे हों।

क्या लिवर फ्लूक संक्रामक (छूत वाली बीमारी) है?

नहीं, लिवर फ्लूक किसी संक्रमित व्यक्ति से सीधे दूसरे व्यक्ति को नहीं फैलता। लिवर फ्लूक के अंडे इंसानों के मल के जरिए बाहर निकलते हैं, लेकिन इनका जीवनचक्र पूरा करने के लिए इन्हें मीठे पानी में पहुंचकर घोंघों (स्नेल) को संक्रमित करना ज़रूरी होता है। संक्रमित मछली या पानी के जरिए ही यह बीमारी इंसानों तक पहुंचती है। हालांकि, खराब सफाई और स्वच्छता की कमी इस परजीवी को इंसान, घोंघों और मछलियों के बीच फैलने का मौका देती है, जिससे यह संक्रमण बना रहता है।

लिवर फ्लूक इंफेक्शन का खतरा किन लोगों को ज़्यादा होता है?

कुछ फैक्टर लिवर फ्लूक इंफेक्शन का रिस्क बढ़ा सकते हैं:

  • कच्ची या अधपकी मीठे पानी की मछली खाना, खासकर उन इलाकों में जहां लिवर फ्लूक आम हैं।
  • संक्रमित पानी में उगे जलीय पौधे (जैसे वॉटरक्रेस) खाना।
  • ऐसे देशों में जाना या रहना, जहां लिवर फ्लूक का प्रकोप ज़्यादा होता है, जैसे एशिया, अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्से।
  • उन देशों से प्रवास (इमिग्रेशन) करना, जहां लिवर फ्लूक के केस ज़्यादा देखे जाते हैं।

लिवर फ्लूक कहां पाए जाते हैं?

लिवर फ्लूक मुख्य रूप से उन विकासशील क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां मीठे पानी के स्रोत अधिक होते हैं और कच्ची या अधपकी मछली खाने की आदत आम होती है।

  • सबसे ज़्यादा जोखिम वाले इलाके: दक्षिण-पूर्व एशिया, खासकर थाईलैंड, लाओस, वियतनाम और कंबोडिया, जहां संक्रमण दर 70% तक हो सकती है।
  • दक्षिणी चीन और कोरियन प्रायद्वीप भी लिवर फ्लूक इंफेक्शन के लिए जाने जाते हैं।
  • अफ्रीका में मिस्र के नाइल डेल्टा क्षेत्र में लिवर फ्लूक के केस ज़्यादा देखे जाते हैं।
  • दक्षिण अमेरिका में पेरू, इक्वाडोर और ब्राज़ील प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।
  • पूर्वी यूरोप में रूस और यूक्रेन में भी लिवर फ्लूक संक्रमण के मामले मिलते हैं।

लिवर फ्लूक के लक्षण हल्के पेट दर्द से लेकर गंभीर लिवर की समस्याओं तक हो सकते हैं। आमतौर पर इसका इलाज एंटी-पैरासिटिक दवाओं से किया जाता है, जो प्रभावित इलाकों में स्थानीय स्वास्थ्य निर्देशों के अनुसार दी जाती हैं।

लिवर फ्लूक से होने वाली जटिलताएं (कॉम्प्लिकेशन) क्या है?

अगर इलाज न किया जाए, तो क्रॉनिक लिवर फ्लूक इंफेक्शन धीरे-धीरे लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है और बाइल डक्ट में रुकावट पैदा कर सकता है। इसके कारण ये गंभीर समस्याएँ हो सकती हैं:

  • बार-बार बाइल डक्ट में संक्रमण (रिकरंट कोलेंजाइटिस)
  • गॉलब्लैडर में पथरी (गॉलब्लैडर स्टोन) और सूजन (कोलेसिस्टाइटिस)
  • लिवर के अंदर पथरी (इंट्राहेपेटिक स्टोन)
  • लीवर में पस भर जाना (लीवर एब्सेस)
  • सिरोसिस और लिवर फेलियर
  • बाइल डक्ट कैंसर (कोलेंजियोकार्सिनोमा)

शोध में पाया गया है कि ओपिस्थॉर्किस प्रजाति से संक्रमित लोगों में बाइल डक्ट कैंसर का खतरा 15 गुना बढ़ जाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया में हर साल 5000 से ज्यादा कोलेंजियोकार्सिनोमा (बाइल डक्ट कैंसर) के मामले लिवर फ्लूक इंफेक्शन के कारण होते हैं।

लिवर फ्लूक का डायग्नोसिस कैसे होता है?

लिवर फ्लूक की पहचान करने के लिए ये टेस्ट किए जाते हैं:

  • मल जांच (स्टूल टेस्ट): फ्लूक के अंडों की पहचान के लिए किया जाता है। कई बार सटीक नतीजे पाने के लिए बार-बार सैंपल देने की जरूरत पड़ सकती है।
  • ब्लड टेस्ट: शरीर में परजीवी के खिलाफ बने एंटीबॉडीज़ की जांच की जाती है।
  • इमेजिंग टेस्ट: अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन से बाइल डक्ट में हुए बदलावों को देखा जाता है।
  • ईआरसीपी (एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियोपैंक्रिएटोग्राफी): बाइलरी सिस्टम को सीधे देखने और समस्या की पुष्टि करने के लिए किया जाता है।

डॉक्टर आपकी यात्रा (ट्रैवल हिस्ट्री), खान-पान की आदतों और असुरक्षित पानी के संपर्क के बारे में भी पूछ सकते हैं। क्योंकि लिवर फ्लूक के लक्षण कई अन्य पाचन रोगों जैसे लग सकते हैं, सही डायग्नोसिस के लिए सावधानी से जांच की जरूरत होती है।

लिवर फ्लूक का इलाज कैसे किया जाता है?

लिवर फ्लूक का इलाज आमतौर पर ऐसी दवाओं से किया जाता है जो वयस्क परजीवियों (एडल्ट फ्लूक) को मारती हैं।

  • इलाज का तरीका फ्लूक की प्रजाति पर निर्भर करता है, और डोज़ व इलाज की अवधि अलग-अलग हो सकती है।
  • अगर संक्रमण गंभीर हो जाए और बाइल डक्ट ब्लॉक हो जाए, तो सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
  • एंटी-स्पास्मोडिक दवाएँ पेट दर्द और मांसपेशियों में ऐंठन से राहत दिलाने में मदद कर सकती हैं।

लिवर फ्लूक के संक्रमण से दोबारा बचने के लिए:  कच्ची मीठे पानी की मछली और जलीय पौधों को खाने से बचें जहां लिवर फ्लूक पाए जाते हैं।

क्या लिवर फ्लूक इंफेक्शन को रोका जा सकता है?

हां, इन सावधानियों का पालन करके आप लिवर फ्लूक के खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं:

  • मीठे पानी की मछली और शेलफिश को अच्छी तरह पकाएं, कम से कम 63°C पर 15 सेकंड तक।
  • मछली को -20°C पर 24 घंटे तक फ्रीज़ करें, ताकि फ्लूक लार्वा नष्ट हो जाएं।
  • कच्चे वॉटरक्रेस या अन्य जलीय पौधों को न खाएं, खासकर उन इलाकों में जहां लिवर फ्लूक का प्रकोप है।
  • झील, तालाब या नदियों का बिना शुद्ध किया हुआ पानी न पिएं।
  • टॉयलेट इस्तेमाल करने के बाद और खाना बनाने से पहले साबुन से हाथ धोएं।
  • यात्रा के दौरान केवल बोतलबंद या उबला हुआ पानी पिएं और स्ट्रीट फूड से बचें।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह: उच्च जोखिम वाले इलाकों में स्क्रीनिंग और समय पर इलाज से लिवर फ्लूक संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। सफाई और स्वच्छता में सुधार करना भी ज़रूरी है, ताकि फ्लूक के अंडे घोंघों तक न पहुंचें और संक्रमण का चक्र टूट जाए।

अगर लिवर फ्लूक इंफेक्शन हो जाए तो क्या उम्मीद करें?

अगर समय पर इलाज मिल जाए, तो लिवर फ्लूक संक्रमण का आउटलुक आमतौर पर अच्छा होता है। ज़्यादातर लोग एक ही डोज़ दवा से ठीक हो जाते हैं, और लक्षण कुछ हफ्तों के भीतर खत्म हो जाते हैं। हालांकि, अगर संक्रमण पुराना हो चुका हो और लिवर को गंभीर नुकसान हुआ हो, तो लंबे समय तक निगरानी और जटिलताओं के प्रबंधन की जरूरत पड़ सकती है।

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

अगर आपको कुछ दिनों से लगातार अस्पष्ट पाचन संबंधी समस्याएँ हो रही हैं, खासकर अगर आप ऐसे इलाके में रहते हैं या यात्रा कर चुके हैं जहां लिवर फ्लूक आम हैं, तो डॉक्टर से संपर्क करें। तेज़ बुखार, पीलिया, तेज पेट दर्द या बाइल डक्ट में रुकावट के लक्षण दिखने पर तुरंत मेडिकल मदद लें।

क्या लिवर फ्लूक इंफेक्शन इंसानों में आम है?

लिवर फ्लूक का संक्रमण दुनियाभर में ४० मिलियन से ज्यादा लोगों को प्रभावित करता है, जिसमें सबसे ज्यादा मामले साउथईस्ट एशिया और कुछ साउथ अमेरिका के देशों में पाए जाते हैं। क्लोनॉरकिस साइनेंसिस (Clonorchis sinensis) से ३५ मिलियन लोग संक्रमित हैं, जबकि ओपिस्टॉर्किस विवेरिनी (Opisthorchis viverrini) से १० मिलियन लोग प्रभावित होते हैं। फैसिओला (Fasciola) प्रजाति के लिवर फ्लूक २.४ से १७ मिलियन लोगों को संक्रमित करते हैं। डेवलप्ड नेशन्स में यह संक्रमण कम देखने को मिलता है, लेकिन फिर भी यह दुनियाभर में लाखों लोगों के लिए एक सीरियस हेल्थ कंसर्न बना हुआ है।

इसे लिवर फ्लूक क्यों कहा जाता है?

"फ्लूक" शब्द ओल्ड इंग्लिश के "फ्लॉक (floc)" से आया है, जिसका मतलब फ्लैटफिश होता है। लिवर फ्लूक को "फ्लूक" इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये चपटे, पत्ते के आकार के कीड़े होते हैं, जो छोटे मछली जैसे दिखते हैं। "फ्लूक" शब्द आमतौर पर किसी भी परजीवी फ्लैटवर्म (ट्रेमाटोड) के लिए इस्तेमाल किया जाता है। "लिवर फ्लूक" विशेष रूप से उन प्रजातियों को दर्शाता है जो लीवर और बाइलरी सिस्टम में संक्रमण करती हैं।

निष्कर्ष

लिवर फ्लूक छोटे हो सकते हैं, लेकिन इनका स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ सकता है। अगर आप समझें कि ये परजीवी कैसे फैलते हैं, लिवर फ्लूक के लक्षण पहचानें, और खाने व पानी को लेकर सावधानी बरतें, तो आप खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं।

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