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डाइवर्टिकुलोसिस: लक्षणों का प्रबंधन और जटिलताओं की रोकथाम

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डाइवर्टिकुलोसिस क्या है?

डाइवर्टिकुलोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें पाचन तंत्र की अंदरूनी परत, खासतौर पर बड़ी आंत (कोलन), में छोटे-छोटे थैलेनुमा उभार (डाइवर्टिकुला) बन जाते हैं। ये पाउच तब बनते हैं जब आंत की दीवार के कमजोर हिस्से बाहर की ओर उभर आते हैं, जो आमतौर पर आंत में बढ़ते दबाव के कारण होता है।

डाइवर्टिकुलोसिस की समस्या उम्र के साथ बढ़ती है और 60 साल से अधिक उम्र के लगभग आधे लोगों में पाई जाती है। ज़्यादातर मामलों में कोई लक्षण नहीं दिखते और यह आमतौर पर रूटीन मेडिकल टेस्ट के दौरान ही पता चलता है। लेकिन अगर लक्षण सामने आते हैं, तो इनमें हल्का पेट दर्द, सूजन (ब्लोटिंग) या मल त्याग की आदतों में बदलाव शामिल हो सकता है।

हालांकि डाइवर्टिकुलोसिस खुद ज्यादा नुकसानदायक नहीं होता, लेकिन अगर इन पाउच में संक्रमण या सूजन हो जाए, तो यह डाइवर्टिकुलाइटिस नामक समस्या पैदा कर सकता है। इसे रोकने के लिए फाइबर से भरपूर आहार लेना और शरीर को हाइड्रेटेड रखना फायदेमंद हो सकता है।

डाइवर्टिकुलोसिस और डाइवर्टिकुलाइटिस में क्या फर्क है?

डाइवर्टिकुलोसिस और डाइवर्टिकुलाइटिस में फर्क समझना जरूरी है। डाइवर्टिकुलोसिस का मतलब है कि आपकी आंत में छोटे-छोटे पाउच (डाइवर्टिकुला) मौजूद हैं, लेकिन उनमें कोई सूजन या संक्रमण नहीं है। दूसरी ओर, डाइवर्टिकुलाइटिस तब होता है जब इन पाउच में सूजन या संक्रमण हो जाता है। डाइवर्टिकुलाइटिस के कारण गंभीर लक्षण दिख सकते हैं, और अगर इसका सही समय पर इलाज न किया जाए, तो यह गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।

क्या डाइवर्टिकुलोसिस गंभीर बीमारी है?

अधिकतर मामलों में, डाइवर्टिकुलोसिस कोई बड़ी समस्या नहीं होती और इससे कोई खास लक्षण या स्वास्थ्य संबंधी परेशानी नहीं होती। कई लोगों को तो यह भी नहीं पता होता कि उन्हें यह स्थिति है।

लेकिन कुछ मामलों में, डाइवर्टिकुलोसिस से जटिलताएँ हो सकती हैं, जैसे डाइवर्टिकुलाइटिस (सूजन और संक्रमण), आंतों से खून आना, आंतों में रुकावट, और गंभीर मामलों में कोलन में छेद (परफोरेशन) होना। इसलिए, भले ही यह आमतौर पर हानिरहित हो, फिर भी इसके संभावित जोखिमों को समझना जरूरी है। अगर आपको कोई असामान्य लक्षण महसूस हों, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।

डाइवर्टिकुलोसिस कितनी आम है?

डाइवर्टिकुलोसिस पश्चिमी देशों में काफी आम है। अमेरिका में, अनुमान लगाया जाता है कि 50 साल से कम उम्र के करीब 35% वयस्कों में यह पाई जाती है, जबकि 60 साल से ऊपर के लोगों में इसकी संभावना बढ़कर 58% हो जाती है। उम्र के साथ इस बीमारी का खतरा बढ़ता है, यानी बुजुर्गों में इसके विकसित होने की संभावना ज्यादा होती है। कुछ शोधों के मुताबिक, आनुवंशिकी (genetics) भी इसमें भूमिका निभा सकती है, जिससे पारिवारिक इतिहास रखने वाले लोगों में इसका खतरा अधिक हो सकता है। इसके अलावा, डाइट और शारीरिक गतिविधि जैसी जीवनशैली से जुड़ी आदतें भी इसके विकास में अहम भूमिका निभाती हैं।

डाइवर्टिकुलोसिस के लक्षण क्या हैं?

अक्सर डाइवर्टिकुलोसिस के कोई लक्षण नहीं होते, और ज़्यादातर लोगों को पता भी नहीं चलता कि उन्हें यह समस्या है। लेकिन जब लक्षण दिखते हैं, तो इनमें शामिल हो सकते हैं: 

  • पेट में ऐंठन या दर्द, खासतौर पर पेट के निचले बाईं तरफ
  • फुलावट (bloating) और भारीपन महसूस होना
  • कब्ज या दस्त, जिनमें मल त्याग का पैटर्न बदल सकता है
  • मल में बलगम (mucus) या खून आना, जो चिंताजनक हो सकता है

डाइवर्टिकुलोसिस के लक्षण कई बार इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) जैसी अन्य पाचन समस्याओं से मिलते-जुलते होते हैं, इसलिए सही डायग्नोसिस करवाना ज़रूरी है। कुछ मामलों में, डाइवर्टिकुलोसिस गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है, जैसे डाइवर्टिकुलाइटिस, जिसमें ये पाउच सूज जाते हैं या संक्रमित हो जाते हैं। डाइवर्टिकुलाइटिस के लक्षणों में तेज पेट दर्द, बुखार, मतली (nausea) और उल्टी शामिल हैं। अगर आपको ये गंभीर लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। नियमित जांच और डॉक्टर से सलाह लेकर सही उपचार योजना बनाई जा सकती है, जिससे डाइवर्टिकुलोसिस को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है।

डाइवर्टिकुलोसिस के कारण क्या हैं?

डाइवर्टिकुलोसिस के सटीक कारण अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन कई कारकों को इसके विकास से जोड़ा गया है:

  • कम फाइबर वाला आहार: अगर आपके खाने में फाइबर की मात्रा कम होती है, तो मल कठोर हो सकता है, जिससे आंतों पर ज़्यादा दबाव पड़ता है। यह दबाव डाइवर्टिकुला (छोटी थैलियों) के बनने का कारण बन सकता है।
  • उम्र बढ़ने के साथ बदलाव: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, बड़ी आंत की दीवारें कमजोर हो सकती हैं, जिससे डाइवर्टिकुला बनने की संभावना बढ़ जाती है।
  • आनुवंशिकता (Genetics): अगर परिवार में किसी को डाइवर्टिकुलोसिस की समस्या रही है, तो आपकी भी इसे विकसित करने की संभावना बढ़ सकती है।
  • जीवनशैली से जुड़े कारक: कम शारीरिक गतिविधि, मोटापा और धूम्रपान जैसी आदतें डाइवर्टिकुलोसिस के खतरे को बढ़ा सकती हैं।

डाइवर्टिकुलोसिस के खतरे को बढ़ाने वाले कारक

कई कारक डाइवर्टिकुलोसिस होने की संभावना बढ़ा सकते हैं:

  • उम्र: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, डाइवर्टिकुलोसिस का खतरा भी बढ़ता जाता है, खासकर 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में यह ज़्यादा देखने को मिलता है।
  • आहार: कम फाइबर वाला आहार जिसमें ज्यादा रेड मीट और फैट हो, डाइवर्टिकुलोसिस के खतरे को बढ़ा सकता है।
  • मोटापा: ज़्यादा वजन होने से आंतों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे डाइवर्टिकुला बनने की संभावना बढ़ जाती है।
  • धूम्रपान: सिगरेट में मौजूद निकोटिन और अन्य केमिकल्स आंतों की दीवार को कमजोर कर सकते हैं।
  • कुछ दवाएं: स्टेरॉयड्स, ओपिओइड्स और नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से भी डाइवर्टिकुलोसिस का खतरा बढ़ सकता है।

डाइवर्टिकुलोसिस की पहचान कैसे की जाती है?

डाइवर्टिकुलोसिस का अक्सर रूटीन जांच या किसी अन्य बीमारी की जांच के दौरान संयोगवश पता चलता है। इसकी सही पहचान के लिए डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट सुझा सकते हैं:

  • मेडिकल हिस्ट्री और शारीरिक परीक्षण: डॉक्टर आपकी पिछली मेडिकल हिस्ट्री जानने के साथ-साथ शारीरिक जांच भी करेंगे।
  • ब्लड टेस्ट: संक्रमण (इन्फेक्शन) या एनीमिया के संकेतों की जांच के लिए खून की जांच की जा सकती है।
  • स्टूल टेस्ट: लक्षणों के अन्य संभावित कारणों को खत्म करने के लिए मल परीक्षण किया जा सकता है।
  • इमेजिंग टेस्ट: सीटी स्कैन (CT Scan) या बैरियम एनीमा एक्स-रे के जरिए आंतों की स्थिति का पता लगाया जाता है।
  • कोलोनोस्कोपी: आंतों के अंदर की स्पष्ट तस्वीर देखने के लिए कोलोनोस्कोपी की जाती है।

डाइवर्टिकुलोसिस की जांच के लिए कौन-कौन से टेस्ट किए जाते हैं?

डाइवर्टिकुलोसिस की पुष्टि होने के बाद ही इसका सही इलाज किया जाता है। इसके लिए डॉक्टर निम्नलिखित जांचें कर सकते हैं:

  • कोलोनोस्कोपी: यह सबसे आम और विश्वसनीय टेस्ट है, जिसमें डॉक्टर एक पतली, लचीली ट्यूब के जरिए आंतों के अंदर का निरीक्षण करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान, जरूरत पड़ने पर बायोप्सी (ऊतक का नमूना) भी लिया जा सकता है।
  • सीटी स्कैन (CT Scan): एक्स-रे और कंप्यूटर तकनीक की मदद से पेट और पेल्विस की विस्तृत छवियां (इमेज) ली जाती हैं, जिससे डॉक्टर डाइवर्टिकुलोसिस की पुष्टि कर सकते हैं और अन्य संभावित बीमारियों को खारिज कर सकते हैं।
  • बेरियम एनीमा एक्स-रे: इसमें बेरियम नामक एक तरल पदार्थ रेक्टम (गुदा) के माध्यम से आंतों में डाला जाता है, जिससे एक्स-रे पर डाइवर्टिकुला अधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं।
  • ब्लड टेस्ट: हालांकि ब्लड टेस्ट से डाइवर्टिकुलोसिस की सीधी पहचान नहीं होती, लेकिन यह शरीर में संक्रमण (इन्फेक्शन), सूजन या एनीमिया की जांच के लिए किया जाता है, जो किसी जटिलता का संकेत हो सकता है।

डाइवर्टिकुलोसिस का इलाज कैसे किया जाता है?

अगर डाइवर्टिकुलोसिस के कारण कोई गंभीर लक्षण नहीं हैं, तो आमतौर पर किसी विशेष इलाज की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि, डॉक्टर डाइवर्टिकुलोसिस को बढ़ने से रोकने के लिए कुछ लाइफस्टाइल में बदलाव करने की सलाह दे सकते हैं:

  • हाई-फाइबर डाइट लें: अपने खाने में साबुत अनाज, दालें, फल और सब्जियां शामिल करें ताकि पाचन तंत्र स्वस्थ रहे।
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं: इससे कब्ज की समस्या से बचाव होता है और आंतों पर दबाव कम पड़ता है।
  • नियमित रूप से एक्सरसाइज करें: फिजिकल एक्टिविटी पाचन को बेहतर बनाती है और आंतों के सामान्य रूप से काम करने में मदद करती है।
  • धूम्रपान और ज्यादा शराब पीने से बचें: ये आदतें आंतों को नुकसान पहुंचा सकती हैं और स्थिति को खराब कर सकती हैं।

अगर डाइवर्टिकुलोसिस के कारण लक्षण दिखते हैं, तो दर्द निवारक दवाएं और एंटी-स्पास्मोडिक (ऐंठन कम करने वाली) दवाएं आराम दे सकती हैं। अगर डाइवर्टिकुलोसिस का संक्रमण (डाइवर्टिकुलाइटिस) हो जाए, तो डॉक्टर एंटीबायोटिक्स और कुछ समय के लिए लो-फाइबर या लिक्विड डाइट की सलाह दे सकते हैं। बहुत गंभीर मामलों में ही सर्जरी की जरूरत पड़ती है, खासकर जब जटिलताएं बढ़ जाएं।

डाइवर्टिकुलोसिस से बचाव कैसे करें?

हालांकि डाइवर्टिकुलोसिस को पूरी तरह से रोकने का कोई पक्का तरीका नहीं है, लेकिन कुछ आदतें अपनाकर आप इसका खतरा कम कर सकते हैं:

  • फाइबर से भरपूर डाइट लें: हर दिन 25-35 ग्राम फाइबर खाने की कोशिश करें, जो साबुत अनाज, दालें, फल और सब्जियों से मिल सकता है।
  • पर्याप्त पानी पिएं: सही मात्रा में पानी और अन्य तरल पदार्थ लेने से मल मुलायम रहता है और इसे आसानी से बाहर निकालने में मदद मिलती है।
  • नियमित व्यायाम करें: फिजिकल एक्टिविटी आंतों को सही तरीके से काम करने में मदद करती है और वजन को संतुलित रखती है।
  • धूम्रपान से बचें: स्मोकिंग से न केवल डाइवर्टिकुलोसिस बल्कि अन्य पाचन संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • रेड मीट कम खाएं: खासकर प्रोसेस्ड मीट का ज्यादा सेवन डाइवर्टिकुलोसिस के खतरे को बढ़ा सकता है, इसलिए इसे सीमित मात्रा में खाएं।

अगर हमें डाइवर्टिकुलोसिस है तो क्या उम्मीद कर सकते हैं?

अगर आपको डाइवर्टिकुलोसिस का पता चला है, तो घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह आमतौर पर मैनेजेबल (संभालने योग्य) होता है। अधिकतर लोगों को कोई लक्षण या गंभीर समस्या नहीं होती, लेकिन अपनी जीवनशैली में सुधार करना बहुत जरूरी है। हेल्दी डाइट, नियमित एक्सरसाइज और सही आदतों को अपनाकर डाइवर्टिकुलिटिस या अन्य जटिलताओं के खतरे को कम किया जा सकता है।

क्या डाइवर्टिकुलोसिस को ठीक किया जा सकता है?

अफसोस की बात है कि डाइवर्टिकुलोसिस एक बार होने के बाद पूरी तरह से ठीक नहीं होता, क्योंकि जो पाउच (डाइवर्टिकुला) बन चुके हैं, वे स्थायी होते हैं। लेकिन अच्छी खबर यह है कि सही डाइट और जीवनशैली से आप उन्हें इंफेक्शन या सूजन से बचा सकते हैं, जिससे कोई गंभीर समस्या न हो।

डाइवर्टिकुलोसिस के साथ खुद का ख्याल कैसे रखें?

अगर आपको डाइवर्टिकुलोसिस है, तो इसे सही तरीके से मैनेज करने और जटिलताओं से बचने के लिए कुछ ज़रूरी कदम उठा सकते हैं:

  • हाई-फाइबर डाइट अपनाएं: धीरे-धीरे फाइबर से भरपूर चीज़ें जैसे साबुत अनाज, फल, सब्ज़ियां और दालें अपनी डाइट में शामिल करें। रोज़ाना कम से कम 25-35 ग्राम फाइबर लेने की कोशिश करें।
  • हाइड्रेटेड रहें: पर्याप्त मात्रा में पानी और अन्य तरल पदार्थ पिएं ताकि कब्ज़ न हो और पेट सही तरीके से साफ़ होता रहे।
  • नियमित एक्सरसाइज़ करें: हफ़्ते में ज़्यादातर दिनों में कोई न कोई शारीरिक गतिविधि करें, जिससे आपका वजन नियंत्रण में रहे, पाचन अच्छा हो और तनाव भी कम हो।
  • धूम्रपान और शराब से बचें: स्मोकिंग और ज़्यादा शराब पीने से पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ सकता है और जटिलताओं का ख़तरा बढ़ सकता है।

क्या डाइवर्टिकुलोसिस कोलन के बाहर भी हो सकता है?

डाइवर्टिकुलोसिस आमतौर पर कोलन (बड़ी आंत) में पाया जाता है, लेकिन यह पाचन तंत्र के अन्य हिस्सों, जैसे छोटी आंत या इसोफेगस (खाने की नली) में भी हो सकता है। हालांकि, यह बहुत कम मामलों में देखा जाता है। छोटी आंत में बनने वाले डाइवर्टिकुला को मेकेल्स डाइवर्टिकुलम कहते हैं, जो जन्म से मौजूद होता है और आमतौर पर कोई लक्षण नहीं देता। वहीं, इसोफेगस में डाइवर्टिकुला दुर्लभ होता है और इससे निगलने में परेशानी या खाने के वापस आने (regurgitation) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

निष्कर्ष

डायवर्टीकुलोसिस एक आम पाचन संबंधी समस्या है, जो खासतौर पर उम्र बढ़ने के साथ अधिक लोगों को प्रभावित करती है। अगर आपको कोई लक्षण महसूस हो रहे हैं या अपने पाचन स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं, तो बिना देर किए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

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